Bhoot ki Kahani | भूत की कहानी हिंदी में 2023

बच्चा शरारती हो तो उसे काबू करना माता-पिता के लिए कोई जंग जीतने से कम नहीं होता। ऐसे बच्चों की शरारतें कम करने का एक तरीका है Bhoot ki Kahani। बच्चों के लिए डरावनी कहानी न सिर्फ उनके नटखटपन को कंट्रोल कर सकती हैं, बल्कि डरपोक किस्म के बच्चों में थोड़ा साहस भरने का काम भी कर सकती हैं।

मॉमजंक्शन के इस पेज पर आपको बच्चों के लिए उपयुक्त भूतों की कहानियां मिल जाएंगी, जिन्हें पढ़कर आप अपने बच्चों को सुना सकते हैं। घोस्ट स्टोरी फॉर किड्स में भूतनी का घर, भूतहा अस्पताल, आत्मा की सवारी और भूतिया सड़क जैसी कई डरावनी कहानियां मौजूद हैं। इनके अलावा भी कई सारी हॉरर स्टोरी फॉर किड्स यहां उपलब्ध हैं,

जिनमें न सिर्फ रोमांच है, बल्कि थोड़ा कॉमेडी का तड़का भी है। डरावनी कहानियां बच्चों के लिए मनोरंजन का अच्छा जरिया साबित होंगी। बस फिर देर किस बात की आज से ही बच्चों को रोज एक डरावनी कहानी सुनाएं और खुद भी इनका आनंद लें।

Bhoot ki Kahani

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Bhoot ki Kahani

मैं दिल्ली के एक फैक्ट्री में साफ- सफाई का काम करता हूं। मेरा घर फैक्ट्री से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। मेरे पास एक साइकिल है। जिससे मैं अपने घर से फैक्ट्री और फैक्ट्री से घर आता-जाता हूं। एक दिन जब मैं फैक्ट्री से घर जा रहा था । तो रास्ते में मुझे एक लड़की दिखाई दी और वह मुझे घूर-घूर के देख रही थी।

मैं उसे टालते हुए अपने घर की ओर निकल पड़ा। दूसरे दिन फिर वही लड़की मुझे उसी जगह पर दिखाई दी और वह मुझे फिर से घूरने लगी फिर भी मैंने उसकी तरफ पलट के नहीं देखा और अपने घर की ओर निकल पड़ा। मैं उसके पास रुका भी नहीं क्योंकि मुझे उस लड़की से डर लग रहा था। वह लड़की कई दिनों तक मुझे देखती रहती थी।

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एक दिन वह लड़की वहां पर नहीं दिखाई दी।तो मैं सोच में पड़ गया। ऐसा क्या हुआ जो वह लड़की आज नहीं आई । फिर मैं अपने घर की तरफ निकल पड़ा। एक हफ्ते बाद मेरे घर पर एक चिट्ठी आई और मुझे पता चल गया था कि यह चिट्ठी उसकी ही है। उसमें उसका नाम प्रीति लिखा हुआ था।और उसमें से एक फोटो निकली थी। जो कि उसी लड़की की थी। मैं चौक गया की उसे मेरा पता कैसे चला।

उस चिट्ठी में लिखा हुआ था.कि कल जब फैक्ट्री से निकलो तो जहां पर मैं खड़ी रहती हूं वहां पर मेरा इंतजार करना उस के दूसरे दिन मैं वहां पर पहुंच गया। तो वह लड़की वहां पर नहीं खड़ी थी। मैंने काफी इंतजार किया फिर मैं अपने घर की तरफ चल दिया.और तभी मुझे याद आया कि वो जो चिट्ठी आई थी। उसमें उसका पता तो होगा। फिर मैं उसका पता पढ़ कर उसके पते के अनुसार मैं उसके घर मिलने के लिए गया।

दरवाजा खोलते ही एक आदमी आया और बोला कि क्या काम है तो मैंने बोला कि मुझे प्रीति से मिलना है। तो उस आदमी ने बोला कि मैं उसका पापा हूं और प्रीति को मरे हुए 2 महीने हो चुके हैं। मेरे हाथ पांव कांपने लगे मैं सोच में पड़ गया कि वह लड़की जो मुझे रास्ते में मिली थी और जिसने मुझे चिट्ठी भेजी थी। वह कौन होगी? मुझे लगा कि वह उसकी आत्मा होगी ।

तभी प्रीति के पापा ने मुझे दिखाया कि देख लो उसकी तस्वीर पर माला पड़ा हुआ था। तभी मैं भागकर अपने घर पहुंचा फिर मैंने उस चिट्ठी को जला दीया .और उस दिन के बाद से मैंने कभी भी अनजान लोगों से मिलना और बात करना बंद कर दिया।

स्कूल वाला भूत

Bhoot ki Kahani

कई साल पहले की बात है । मैं जोधपुर के एक छोटे से गांव में प्राइमरी स्कूल में अध्यापक था। मेरे साथ उसी स्कूल में 5 अध्यापक और थे । उन लोगों की शादी हो चुकी थी । और उनका अपना – अपना परिवार था । और मैं कुंवारा था। मेरी शादी नहीं हुई थी ।

सब लोग गांव में मकान भाड़े से लेकर रहते थे । और मैं स्कूल के पास ही एक अलग छोटा सा कमरा बना हुआ था। जिसमें मैं अकेला ही रहता था । स्कूल के चारों ओर खेत और झाड़ियां थी । स्कूल गांव से थोड़ी दूरी पर था । स्कूल में बिजली नहीं थी ।

और मैं अकेला अपने कमरे में लालटेन जला के खाना बनाता । और खाकर सो जाता था। तभी मेरे एक दोस्त ने बोला कि आप अपना टाइम कैसे निकलते हो । कल से हम लोग खाना खाने के बाद रात में तुम्हारे पास आएंगे । तुम्हारा भी थोड़ा हंसी मजाक में टाइम पास हो जाएगा । दूसरे दिन स्कूल से छुट्टी होने के बाद घर पर जाकर खाना-वाना खा के अपने कहे अनुसार मेरे सारे मित्र रात को 10:00 बजे मेरे घर पर आ गए। और हम लोग बातें करने लगे ।

थोड़ी रात बीत गई । तभी हमारे एक मित्र ने कहा कि यहां पर ना तो बिजली है । ना तो टीवी है . हम लोग बैठकर यहां पर क्या करेंगे चलो । आज हम लोग थोड़ी मस्ती करते हैं। दूसरे मित्र ने बोला हम अपने साथ ताश के पत्ते लाए हैं । चलो खेलते हैं और हम लोग धीमी लालटेन को जलाकर।

उसके सामने बैठकर ताश खेलना चालू कर दिया । थोड़ी देर बाद गर्मी लगने लगी । तो हमने सारी खिड़कियां खोल दी तो अच्छी हवा आने लगी । और हम लोग ताश खेलने में व्यस्त हो गए। तभी हमारे तीसरे मित्र ने बोला कि हमारे पास बीड़ी और माचिस भी है।

बोलो तो बीड़ी सुलगाए हम लोगों ने बोला क्यों नहीं । तो हमारे मित्र ने चार बीड़ी जलाई । सब ने एक – एक बीड़ी अपने हाथ में ले ली। तभी एक मित्र ने बोला अरे मुझे भी तो पिलाओ हमने हंसकर बोला।

क्यों मजाक कर रहे हो । अभी तो तुमने बीड़ी अपने हाथ में ली थी। तो उसने बोला कि हमको तो दिया ही नहीं हमको लगा। कि यह मजाक कर रहा है.और हमने यह बात हंसी में टाल दी । दूसरे दिन मेरे मित्र लोग मेरे घर पर फिर से आ गए। और बीड़ी ताश के पत्ते खेलने लगे यह सिलसिला फिर देर रात तक चलता रहा।

तभी मुझे लगा की खिड़की से कोई लंबा सा हाथ अंदर आया और मेरी बीड़ी लेकर चला गया। तब तो मनो की मेरे होश उड़ गए। लेकिन उसका चेहरा हमें दिखाई नहीं दिया । क्योंकि बाहर अंधेरा था और अंदर लालटेन धीमी जल रही थी ।

यह घटना चार-पांच दिन तक मेरे साथ होती रही। तो मैंने छठे दिन जब सवेरे मेरे मित्र लोग स्कूल में पढ़ाने आए । तब मैंने यह बात सबको बताई । सब ने बोला हां मैंने भी सुना है ।

कि स्कूल के अंदर किसी अध्यापक ने किसी कारण जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी । और उसी की आत्मा आज भी स्कूल के आस पास भटकती रहती है । तो 1 दिन एक मित्र ने बोला आज हम उससे पूछेंगे कि आप कौन हो । क्या पता कोई आदमी ही हो । और हमारी तरह वह भी रात में टाइमपास करने आता हो

हमने बोला कि ठीक है । रात में मेरे सारे मित्र मेरे घर आए आज तो पांचवा आदमी भी खिड़की से अंदर आकर बैठ गया । साथ में ताश खेला और बीड़ी भी पिया जब खेल खत्म हो गया । तो वह खिड़की से बाहर जाने लगा तभी मैंने आवाज दी काका कल फिर से आओगे । उसने कुछ नहीं बोला ।इतना सब होने के बाद उसने हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था। हमारे एक मित्र ने उसके मुंह पर टॉर्च जलाई ।

तभी मैंने उसका हाथ पकड़ लिया । लेकिन टॉर्च के सामने हम लोगों ने उसका थोड़ा बहुत चेहरा देख लिया था। वह काला काला आदमी मटमैली सफेद रंग की धोती और मुंह पर बहुत सारे चेचक के निशान थे । सब लोग बहुत डर गए।

सब ने बोला चलो गांव वालों को बताते हैं। हमने बोला नहीं बच्चों के भविष्य का सवाल है । कोई अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं भेजेगा तभी एक मित्र ने बोला चलो कल से जहां पर यह जलाया गया था । वहां पर बीड़ी माचिस ताश के पत्ते रख देते हैं ।

क्या पता इसको भी इन चीजों में दिलचस्पी हो दूसरे दिन हम लोगों ने ऐसा ही किया तो रात में वह अंदर खेलने नहीं आया। हम लोग ऐसा चार-पांच दिन में एक बार रख के आ जाते थे । एक बार गांव वालों ने देख लिया और पूछा तो हमने सारी बातें बता दी । तब से आज भी वहां पर गांव वाले बीड़ी माचिस ताश के पत्ते हफ्ते में एक बार जरूर चढ़ाते हैं। और आज भी वह आत्मा किसी को परेशान नहीं करती

 

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